एक वक्त था
एक वक्त था जब तुमसे बेइंतेहा प्यार करता था
अब तू खुद मोहब्बत बन करके चले आओ तो फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था जब तेरी परवाह करता था
अब तो तू मेरी खातिर फनाह भी हो जाये तो फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था जब तुझे हज़ारो मैसेज लिखा करता था
बस दिन भर तेरा लास्ट सीन देखा करता था
अब तो अर्शा बिट गया है विजिट किये हुए तेरे प्रोफाइल को
जा जा अब तू २४ घंटा भी ऑनलाइन रह जाये तो मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था जब तुझे प्यार करता था
एक वक्त था जब तुझसे बिछड़ जाने का डर लगा रहता था
अब सुन ले इतना जलील हो चूका हु तेरे इश्क़ में
अब तू एक किया १०० मर्तबा भी छोड़ जाये तो फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था जब तुझ बिन एक पल नहीं रह सकता था
बेचैन गुमसुदा बेचैन अकेलेपन से डरता था
अब तो इतना वक्त बिता चूका हु इस अकेलेपन में
अब तो ता उम्र अकेला रहना पर जाये तो फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था जब कोई तुझे छु ले तो मेरा खून खोल उठता था
एक हुस्न के सिवा कुछ था तेरे पास
इतना गुरुर किया तूने इस मिटटी के जिस्म पर
जा तू अब किसी और का भी हो जाये तो फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था जब तेरे लिए खुदा से मिन्नतें मांगता था
मुझे तो कुछ नहीं चाहिए था बस तेरे लिए खुदा को आजमाता था
अब सुन ले न झुकता हु और ना मांगता हु किसी को
अब तो तू खुद खुदा बन चली आये तो कोई पड़ता
एक वक्त था जब तुझसे प्यार करता था
बताना अगर मिल जाये तुझे मुझ जैसा कोई अगर
जा तू ओरो को आजमा ले मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था जब तुझसे प्यार करता था
एक वक्त था जब तुझे हज़ारों के महफ़िल में पहचान लिया करता था
हिजाब में होती तो सिर्फ तेरे आँखों से पहचान लिया करता था
अरे अब तो हमने निगाहों से तुझे किया ओझल इस कदर
कि तू इस भीड़ में सुन भी रही तो फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था जब तुझसे प्यार करता था
अरे अब खुद हे में मस्त हो गया है तेरा शाकिर इतना
कि अब कोई सुनने आये या न आये कोई फर्क नहीं पड़ता
खैर चाहता तो नहीं था की यूँ बेनकाब करूँ इस कदर
लेकिन सुन ले ए बेवफा मेरी कलम से बेइज्जत हो जाये तो मुझे फर्क नहीं पड़ता
एक वक्त था जब तुझसे प्यार करता था
याद कर वो वक्त जब एक लफ्ज नहीं सुन पाता था तेरे खिलाफ
अब मैं खुद तेरे खिलाफ हूँ मझे फर्क नहीं पड़ता
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